1
हल ने चूमी
ज्यों ही बंजर भूमि
अंकुर फूटा।
2
नदी के पथ
मेघों ने हाँके रथ
जल में डूबे।
3
मेघों ने भरी
ज्यों दूध की हंडिया
पगडंडियाँ।
4
वर्षा ज्यों रूठी
नभ की धरा संग
प्रतिज्ञा टूटी।
5
ओस ज्यों गिरी
बढ़ती मंद-मंद
मिट्टी की गंध।
6
मंडी के दाम
खेत ज्यों पके, गिरे
सुबह-शाम।
7
शाम ढलते
हाली मंडी से लौटें
हाथ मलते।
8
खेत चुकाते
हँसते-करहाते
हाली का कर्ज।
9
हाली को रोज
नश्तर सा चुभता
कर्ज का बोझ।
10
पढ़ के मंत्र
ओले खेत रौंदे, ज्यों
कोई षड्यंत्र।
11
गाँव देखते
पोस्टमैन की बाट
खड़े उदास।
12
आँखों को फोड़े
धुआँ सिर पे छोड़े
ईटों के भट्टे।
13
गाँव है प्रौढ़
शहर चले हाली
उनको छोड़।
14
गाँव बदले
अपने रंग-ढंग
बेला के संग।
15
सूखे ज्यों खेत
फसलों की जगह
उगता रेत।
16
खेत है रोते
सूखी नदियाँ देख
जागते-सोते।
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