नदी पर हाइकु
1
वीरानी नदी
देखी हजारों सदी
कई सभ्यता।
2
नदियाँ चली
वन के बीचोबीच
डरी सेहमी।
3
नदी ने बाँधे
पेड़ों को सलिल दे
प्रेम के धागे।
4
पवित्र नदी
छोड़ा ज्यों ही बीहड़
दूषित बनी।
5
सूखी नदियाँ
किसे पार उतारे
माँझी की नाव।
6
नदी की पीर
शहर ने पिलाया
दूषित क्षीर।
7
उत्सुक नदी
भूली, कब दौड़ी थी?
अंतिम बार।
8
बहती नदी
छोड़ के चली, पीछे
ताल-तलैया।
9
रो पड़े खेत
किसान भी उदास
ज्यों सूखी नदी।
10
नदी के पास
किनारे मीठी छांव
दौड़ती नाव।
11
गले की फांस
रुकी नदी की साँस
ज्यों बना बांध।
12
जंगल डूबे
बांधो ने खायी नदी
तालाब ऊबे।
13
खोया सौन्दर्य
नदी, वन, पानी ने
ज्यों बांध बने।
14
पर्वत रोयें
नदी-धार निकली
वन ज्यों खोये।
15
पहाड़ भेजें
रो-रो बेमोल मोती
नदी स्वरूप।
16
तुंग ने भेजी
हिम से बना नदी
भू ने सहेजी।
17
नदी संपदा
प्रदूषित भटके
दर-बदर।
18
नदियाँ स्थिर
पेड़ों पे बैठे पक्षी
ज्यों पंख कटे।
19
रवि नहाए
मन को बहलाएं
सूखी नदी में।
20
वर्षा ज्यों बढ़ी
त्राहि-त्राहि पुकार
नदी उफान।
21
वनों का ह्रास
बहे नदी उदास
घुटता सांस।
22
सिंधु लहर
देखने को उमड़ा
पूरा शहर।
23
तुंग से चली
हिम चादर ओढ़े
उत्सुक नदी।
24
नदी विलुप्त
खेतों की रूह दागी
जन सुषुप्त।
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