प्रेम पर ताँका

 1

प्रेम के बीज

वसुधा पे बिखेरे

घृणा की मात

ऐसे मिट्टी में मिली

ज्यों खरपतवार। 


2

हमारा प्रेम

साथ दौड़ते मार्ग

कभी ना मिलें

परंतु साथ रहे

मीलों तक चुप से। 


3

दूर क्षितिज

धरा नभ मिलन

प्रेम विजित

सूर्य गुस्से में लाल

हो गया बदहाल । 


4

स्नेह-नेत्रों से

चुटकी भर प्रेम

खोजता खग

वन-वन भटका

ज्यों कस्तूरी-मृग। 


5

प्रेम-संयोग

सदा शाश्वत रहे

ज्यों भोर उषा

प्रतीची भी चमकी

नियमविवर्जित। 


6

प्रेम-वियोग

बची स्मृतियाँ शेष

प्रतिज्ञा टूटी

शरीर जीर्ण-क्षीण

ज्यों अस्थि-अवशेष। 


7

क्यों बैठी प्रिये? 

मुँह फेरें उदास

प्रणय-मास

एक उदास नदी

ज्यों ढूँढ रही सिंधु। 


8

दुःख या सुख

सदा साथ रहे, ज्यों

चाँद-चाँदनी

दुःख साथ काटते

सुख साथ बांटते। 


9

प्रेम में लीन

सदा ऐसे मिले, ज्यों

नदी सिंधु में

पूर्णतया विलीन

उत्सुक साथ बहे। 


10

प्रेम के क्षण

कृष्ण-राधा बजाते

बाँसुरी संग

हृदय में गूंजता

स्नेहपूर्ण संगीत। 


11

प्रेम में आस्था

शांत नदी ढूँढती

सिंधु का रास्ता

मिलों दूर मंजिल

सड़क भी सर्पिल। 


12

ज्यों पुष्प खिले

तितलियों ने खींचे

उनके गाल

प्रणय अनुभूति

मन में लिए फिरे।


13

मेघों ने पढ़ी

नदियों की उदासी

वो रही थी क्यों प्यासी? 

रो रोकर की वर्षा

ज्यों वियोग में प्रेमी। 


14

भ्रम में हुए

रिश्तों में समझौते

क्षणभंगुर

जन्मों-जन्म का प्रेम

पल में बने खोटे।


15

हवा का स्पर्श

कर रहा पेड़ो से

प्रेम-विमर्श

पत्ते झूमने लगे

डाल चूमने लगे। 


16

प्रणय नदी

चतुर्दिक बहती

हर्ष बिखेरे

घृणा बहा ले गई

प्रेम गीत कहती। 


17

छुप के फेंका

पत्थर में लपेट

प्रणय पत्र

बालकनी पे पढ़े

चुनरी में समेट। 


18

दुःख लपेटे

खिड़की से झाँकते

नभ के पाखी

विथियों को तांकते

मंजूषा का बंधन। 


19

पढ़ा आज ज्यों

खिड़कियों में बैठ

आखिरी पत्र

याद आया अतीत

प्रेम था शब्दातीत।


20

हृदय पीड़ा

प्रेम में भी ढूँढते

लोग सुविधा

विष बना, अमृत

कृष्ण नाम ज्यों लिया। 

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