युद्ध को अब विराम दो!

 

मिट्टी हो गयी लाल-गुलाल

धड़ से अलग पड़ी कपाल

कुरुक्षेत्र पट गया लाशों से

योद्धा लड़ रहे साँसों से

रणभूमि को थोड़ा आराम दो

युद्ध को अब विराम दो! 


तीर चल रहे ध्वनि की भाँति

तेज उगल रहे अग्नि की भाँति

तलवारें और अस्त्र ले रहे प्राण

बरसाएं जा रहे अमोघ बाण

दुर्योधन हठ छोड़ो पाँच ग्राम दो

युद्ध को अब विराम दो! 


सत्य को परिभाषित करते

दु:शासन को अनुशासित करते

पितामह के मौन को तोड़ा जाता

दुशासन को रोका जाता

विदुर-नीति पर काम दो

युद्ध को अब विराम दो! 


गर्दन काट रही तलवारें

आग उगल रही मिशालें

रथ के रथ चकनाचूर हुए

दो-दो हाथ भरपूर हुए

हे नारायण! ये प्रलय थाम दो

युद्ध को अब विराम दो! 


नभ में गिद्धों की कतार

धरती पर लाशों का अंबार

रक्तपात देख हृदय विचलित 

संबंध टूटे हो गए सीमित

अर्जुन को गाँव निष्काम दो

युद्ध को अब विराम दो! 

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