युद्धभूमि में

 युद्धभूमि में अगर रक्त गिरे

धर्म-युद्ध में कोई अशक्त गिरे
फिर तोड़ फेंकना मेरे शस्त्र
नही लेना कोई प्रतिकार मुझे
हाँ!अपनी हार स्वीकार मुझे।

नही बनना कोई सिद्ध मुझे
नही करनी युद्ध की जिद्द मुझे
नही देखना बच्चो के आँखों में नेत्रजल
नही सुननी विधवाओं की चीत्कार मुझे
हाँ! अपनी हार स्वीकार मुझे।

अब मुझसे स्नेह की बात करो
हिंसा पर प्रेम से आघात करो
सौंप दिए कवच-कुंडल इंद्र को
त्याग गया अब तो अहंकार मुझे
हाँ! अपनी हार स्वीकार मुझे।

गिरे हुए घरौंदे रोते
पक्षी रात भर नही सोते
छोड़ दो ये युद्ध की जिद्द
बार-बार समझाती ब्यार मुझे
हाँ! अपनी हार स्वीकार मुझे।

लहू की नदियाँ बहती देखी
प्रकृति अकेले रोती देखी
देखे ज्यों युद्ध के वीभत्स दृश्य
फिर माँगे प्रेम, हृदय पुकार मुझे
हाँ! अपनी हार स्वीकार मुझे।

ना मैं कोई दुर्योधन मूर्ख
ना मैं कोई कुंती-पुत्र
भरनी है, हार स्वीकार कर
हृदयों के मध्य दरार मुझे
हाँ! अपनी हार स्वीकार मुझे।

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