काँटो में खिलने वाले

 मखमल के गद्दे त्याग

पत्थर पर चलने वाले

पुष्प अवश्य उगते है

काँटो में खिलने वाले

ज्येष्ठ में लू के गर्म थपेड़े

भला क्या हौसला तोड़ेगे? 

तूफानों के डर से पंछी

क्या अपना घर छोड़ेगे? 

चाह अगर हो तो नाव

किनारा पा जाती है

दूर तुंग पर बैठी बर्फ

नदी मिलन को आ जाती है

पथिक दृढ़ इच्छा वाले ही

चट्टानों से टकराते है

रास्ते कितने पथरीले हो

वो सदा मुस्कुराते है

ओस की बूँद छोड़ जब

नभ को आ जाती है

घास से गले मिलकर

जीवन-मुक्ति पा जाती है

पोखर-पोखर शांत पड़ा है

नदियाँ बहती गाकर गीत

प्राची की उषा जागी 

लेकर मन में धरा-प्रीत

परिस्थिति विकट हो कितनी

मिलते है मिलने वाले

पुष्प अवश्य उगते है

काँटो में खिलने वाले। 


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