प्रेम पर ताँका-2
1
तुम्हारा स्पर्श
प्रभात की किरण
छू रही ओस
मोती सा खिल उठा
मेरा वियोगी मन।
2
उदास चाँद
चाँदनी ढूँढती, ले
प्रेम दर्पण
पूर्णिमा की रजनी
हृदय समर्पण।
3
अधूरे पन्ने
हृदय अभिलाषा
प्रेम-संदेश
लिखें साथ बैठ के
चाँदनी उजास में।
4
जीवन गति
तेरे चारो तरफ
भू की तरह
प्रेम को लालायित
ज्यों हो चाँद-चाँदनी।
5
चाँद के नीचे
अप्रतिहत मन
स्नेह जिज्ञासा
व्याकुल हो खोजता
अपरिमित प्रेम।
6
अर्थ ना ढूँढो
चाँदनी सा उज्ज्वल
चुप सा रहा
व्यक्त कैसे करता
शब्दातीत प्रेम।
7
निर्मोही मन
प्रेम में डूबा ऐसे
वसुधा-नभ
गाँव से भेजी चिट्ठी
पवन के सहारे।
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