लू व गर्मी पर हाइकु
1
रवि ज्यों डूबा
पेड़ों पर चहक
घोसलें भरे।
2
खाने को दौड़े
शाम की तन्हाईयाँ
अकेला मन।
3
गोधूलि बेला
नभ बिल्कुल खाली
चाँद अकेला।
4
चाँद का साथ
जुगनू भी दौड़ता
नंगे ही पाँव।
5
पटबिजना
दिन भर करता
बैटरी-चार्ज।
6
करे विश्राम
दिन भर की थकी
सिंदूरी शाम।
7
वियोगी मन
झुलसा रहा ऐसे
जेठ में गर्मी।
8
जेठ की गर्मी
शरीर ऐसे पका
तवे पे रोटी।
9
धरा सुलगे
सूरज ज्यों उगले
जेठ में आग।
10
गई भड़क
पथिक को जलायें
कच्ची सड़क।
11
घर में खैर
रोटी के जैसा सिका
ज्यों नंगे पैर।
12
हृदय पीड़ा
जेठ में रवि करें
क्यों अग्नि-क्रीड़ा।
13
जेठ की धूप
तंदूर सेंक रही,
रवि को भूख।
14
धरा ज्यों जली,
नभ छोड़ चिड़िया
पेड़ों में चली।
15
लू का तांडव
पेड़ व्याकुल होएं
चिड़िया रोएँ।
16
पानी के ठेले
प्यासे घूमते स्वयं
लू में अकेले।
17
फूलों के गाल
खा के लू के थपेड़े
हो गए लाल।
18
नदी के द्वार
धूप में सूखकर
बने बेजार।
19
दूर खेतों में
सूखे रेतों में, बनी
मृगमरीची।
20
भानु को भूख
चूल्हा जलाने आई
जेठ में धूप।
21
लू के अस्त्र
देह को बीध रहे
कोई दिव्यास्त्र।
22
छूटते प्राण
लू साथ उठा लाई
अमोघ बाण।
23
उगले आग
जेठ में दिवाकर
अग्नि खा कर।
24
पेड़ों की छाँव
शहर से दौड़ के
आ गए गाँव।
25
लू का घमंड
श्रावण में तोड़ती
वर्षा प्रचंड।
26
लू से डर के
चिड़िया जल लाएं
चोंच भर के।
27
जेठ की गर्मी
उसके सिर फूटी
लू की बेशर्मी।
28
क्या गर्मी? क्या लू?
भूमाफिया ढो रहे
नदी से बालू।
29
गर्मी अचेत
मेघों ने पाट दिए
मेह से खेत।
30
गर्मी का दर्प
मेघों ने कर दिया
नेस्तनाबूद।
31
पीड़ा से ग्रस्त
धरा रही कराह
लू में तप के।
©कपिल कुमार
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें